"क्या यह समर्पण कर सकोगे ?"
'जिंदगी से खेलते हो
रोज तुम ये जानता हूँ,
और तुम्हारी 'नीति -शक्ति'
की महत्ता मानता हूँ,
कोटि-शत -सहस्त्र प्राणों
पर तुम्हारा क्षत्र भी है,
हस्तलिपि में रंक-जन के
भाग्य का नक्षत्र भी है,
एक भृकुटी तनी हो तो
राष्ट्र में भूचाल सा हो,
और पलती दृष्टि तो फिर
विश्व में संहार सा हो,
साम-दाम-दंड-भेद से
तुम्हारे शस्त्र भी हैं,
राजनीति, कूटनीति
के अमोघ अस्त्र भी हैं,
किंतु क्या तुम लोभ तज कर
राष्ट्रहित में क्षोभ तजकर
मनुज के उत्थान के हित
प्राण अर्पण कर सकोगे?'
--
'क्या यह समर्पण कर सकोगे'
----डॉ ० प्रेमांशु भूषण 'प्रेमिल'
A site featuring original hindi stories and poems
Monday, November 3, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
PREMIL JEE
ReplyDeleteसाम-दाम-दंड-भेद से
तुम्हारे शस्त्र भी हैं,
राजनीति, कूटनीति
के अमोघ अस्त्र भी हैं,
सच पूरी रचना विचारोत्तेजक बन पड़ी है
अच्छी रचना पोस्ट कराने के लिए आभार