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Saturday, September 6, 2008

कृतघ्न


कृतघ्न


हमने तुम्हे रचा

आसरा दिया -

मंदिरों में,

पूजा की

फूल चढाये

तुम पर विश्वास किया

अपना सर्वस्व दिया ----


तुमने हमें क्या दिया?

---

अपने ही नाम पर

भाई-भाई बाँट दिए-

रक्त पिया

नर-बलि ली !!

---

रे कृतघ्न !!

भूलता है !

हम हैं-

तो तू है

और तेरा ये मान दान

वरना तू है ही क्या ?

मिट्टी की मूरत भर !!


----- डॉ ० प्रेमांशु भूषण 'प्रेमिल'

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