कृतघ्न
हमने तुम्हे रचा
आसरा दिया -
मंदिरों में,
पूजा की
फूल चढाये
तुम पर विश्वास किया
अपना सर्वस्व दिया ----
तुमने हमें क्या दिया?
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अपने ही नाम पर
भाई-भाई बाँट दिए-
रक्त पिया
नर-बलि ली !!
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रे कृतघ्न !!
भूलता है !
हम हैं-
तो तू है
और तेरा ये मान दान
वरना तू है ही क्या ?
मिट्टी की मूरत भर !!
----- डॉ ० प्रेमांशु भूषण 'प्रेमिल'
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