मनुष्य
म्लान नयन, कम्पित बदन
सम्मुख निजन - खंडित भवन
दिशा - रहित रात्रि सघन
मेघ-मंडित गहन गगन
क्षुधा भीषण, त्रास अमित
मार्ग भ्रमित, श्रांत पथिक ।
पंक-गर्भित पग प्रकम्पित
रुग्ण काया, श्वांस लंबित
अथक वृष्टि, पवन विचलित
क्षण-क्षण में पुनः पतित
दामिनि दमकाए तड़ित
क्लांत ह्रदय, श्रांत पथिक ।
गहन -भीषण वन अनंतर
मार्ग मधुमय, दृष्टि उज्जवल
प्रलय के उपरांत कण-कण
सृष्टि नित प्रारम्भ प्रति पल
अजय इच्छा, दृढ़ प्रतिज्ञा
एक मात्र सिद्धांत पथिक
सदा विजयी मनुपुत्र
है वो श्रांत पथिक !!
---------डॉ ० प्रेमांशु भूषण 'प्रेमिल'
Excellent poem boss
ReplyDeletekeep up the good work !
only a pathik like u can remain sooooo shrant in the time of doom......!
ReplyDeletevery nice poem...!!
Maharaj, you haven't lost that touch.....!!!!
Wonderful...amazing......inspiring.......!!!!!
ReplyDeleteSweety Pathak