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Wednesday, August 13, 2008

तुम

तुम




तुम्हे विस्मृत करुँ किस भाँति मैं !



तुम जो मेरी धमनियों में प्रवहमय हो ,

तुम जो मेरी काया में गतिमय ह्रदय हो ,

तुम जो मेरे श्वांस-गति की मधुर लय हो ,

तुम्हारे बिन जिऊँ किस भाँति मैं ,

तुम्हे विस्मृत करुँ किस भाँति मैं !



तुम मेरे छंदों की अस्फुट चेतना हो ,

तुम मेरे शब्दों में चित्रित वेदना हो ,

तुम मेरे गीतों में मुखरित कल्पना हो ,

तुम्हारे बिन रचूँ किस भाँति मैं ,

तुम्हे विस्मृत करुँ किस भाँति मैं !



तुम मेरे पार्थिव बदन की शायिका हो ,

तुम मेरे हर पाप की परिमार्जिका हो ,

तुम मेरे निर्वाण की भी वाहिका हो ,

तुम्हारे बिन मरूँ किस भाँति मैं ,

तुम्हे विस्मृत करुँ किस भाँति मैं !



......डा ० प्रेमांशु भूषण 'प्रेमिल'

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