तुम
तुम्हे विस्मृत करुँ किस भाँति मैं !
तुम जो मेरी धमनियों में प्रवहमय हो ,
तुम जो मेरी काया में गतिमय ह्रदय हो ,
तुम जो मेरे श्वांस-गति की मधुर लय हो ,
तुम्हारे बिन जिऊँ किस भाँति मैं ,
तुम्हे विस्मृत करुँ किस भाँति मैं !
तुम मेरे छंदों की अस्फुट चेतना हो ,
तुम मेरे शब्दों में चित्रित वेदना हो ,
तुम मेरे गीतों में मुखरित कल्पना हो ,
तुम्हारे बिन रचूँ किस भाँति मैं ,
तुम्हे विस्मृत करुँ किस भाँति मैं !
तुम मेरे पार्थिव बदन की शायिका हो ,
तुम मेरे हर पाप की परिमार्जिका हो ,
तुम मेरे निर्वाण की भी वाहिका हो ,
तुम्हारे बिन मरूँ किस भाँति मैं ,
तुम्हे विस्मृत करुँ किस भाँति मैं !
......डा ० प्रेमांशु भूषण 'प्रेमिल'
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