राजतंत्र में
सुना था ऐसा-
लोगों को
लूटा जाता था,
नोंचा,
मारा-पीटा जाता,
बात-बात पर-
बिना बात पर-
कोड़ों की बरसात
हुआ करती थी लेकिन;
यारों हम तो
वैसे जन हैं,
लोकतंत्र
या राजतंत्र हो-
सैन्यतंत्र
या फलांतंत्र हो-
जो जाते हैं
हर दम दूहे,
नई दवाई
जिन्हें खिलाओ
काट-पीट कर,
छील-छाल कर,
चाहे जो भी
‘टेस्ट’ करो तुम ,
कभी नहीं
कुछ कह सकते जो
भले चुभाओ
मोटे सूए-
हम लैबरोटरी के चूहे !!
--डॉ ० प्रेमांशु भूषण ‘प्रेमिल’
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Friday, October 31, 2008
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